https://www.historyonline.co.in

Sunday 30 January 2022

महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे, 30 जनवरी 1948 की घटना

 महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे, 30 जनवरी 1948 की घटना 





अपने अंतिम दिनों में गांधी इस हद तक अपनी मौत का पूर्वानुमान लगा रहे थे कि लगता था कि वो ख़ुद अपनी मौत के षडयंत्र का हिस्सा हैं.


20 जनवरी को जब उनकी हत्या का पहला प्रयास किया गया उसके बाद से अगले दस दिनों तक उन्होंने अपनी बातचीत, पत्रों और प्रार्थना सभा के भाषणों में कम से कम 14 बार अपनी मृत्यु का ज़िक्र किया.


21 जनवरी को उन्होंने कहा, "अगर कोई मुझ पर बहुत पास से गोली चलाता है और मैं मुस्कुराते हुए, दिल में राम नाम लेते हुए उन गोलियों का सामना करता हूं तो मैं बधाई का हक़दार हूं."


अगले दिन उन्होंने कहा कि "ये मेरा सौभाग्य होगा अगर ऐसा मेरे साथ होता है."


29 जनवरी, 1948 की शाम राजीव गांधी को लिए इंदिरा गांधी, नेहरू की बहन कृष्णा हठीसिंह, नयनतारा पंडित और पद्मजा नायडू गांधी से मिलने बिरला हाउस गए थे.


कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, "घर से निकलने से पहले इंदिरा गांधी को माली ने बालों में लगाने के लिए चमेली के फूलों का एक गुच्छा दिया. इंदिरा ने तय किया कि वो उसे गांधीजी को देंगी. बिरला हाउस में वो लोग लॉन में बैठे हुए थे जहां गांधी एक कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे."


वो लिखती हैं, "चार साल के राजीव थोड़ी देर तो तितलियों के पीछे दौड़ते रहे लेकिन फिर गांधी के पैरों के पास आकर बैठ गए और इंदिरा के लाए चमेली के फूलों को उनके पैरों की उंगलियों में फंसाने लगे. गांधी ने हंसते हुए राजीव के कान पकड़ कर कहा, 'ऐसा मत करो. सिर्फ़ मरे हुए व्यक्तियों के पैरों में फूल फंसाए जाते हैं."


तड़के शुरू हुआ गांधीजी का दिन

30 जनवरी, 1948 को गांधी हमेशा की तरह सुबह साढ़े तीन बजे उठे. उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया.


इसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और दोबारा सोने चले गए. जब वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़े.


इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के भविष्य के बारे में लिखे अपने नोट में थोड़ी तब्दीली की और रोज़ की तरह आभा से बांग्ला भाषा सीखने की अपनी मुहिम जारी रखी.


नाश्ते में उन्होंने उबली सब्ज़ियां, बकरी का दूध, मूली, टमाटर और संतरे का जूस लिया.


उधर शहर के दूसरे कोने में सुबह सात बजे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के छह नंबर वेटिंग रूम में जब नारायण आप्टे और विष्णु करकरे पहुंचे, उस समय तक नाथूराम गोडसे जाग चुके थे.


बुर्का पहनकर जाने का प्रयोग फेल हुआ




डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस अपनी किताब 'फ़्रीडम ऐट मिडनाइट' में लिखते हैं, "किसी ने सुझाव दिया कि नाथूराम एक बुर्का पहन कर गांधीजी की प्रार्थना सभा में जाएं. बाज़ार से एक बड़ा-सा बुर्का भी ख़रीदा गया. जब नाथूराम ने उसे पहन कर देखा तो उन्हें महसूस हुआ कि ये युक्ति काम नहीं करेगी. उनके हाथ ढीले-ढाले बुर्के की तहों में फंस कर रह जाते थे."


"वो बोले- ये पहन कर तो मैं अपनी पिस्तौल ही नहीं निकाल पाउंगा और औरतों के लिबास में पकड़ा जाउंगा तो उसकी वजह मेरी ताउम्र बदनामी होगी, सो अलग. आख़िर में आप्टे ने कहा कभी-कभी सीधा साधा तरीक़ा ही सबसे अच्छा होता है."


"उन्होंने कहा कि नाथूराम को फ़ौजी ढंग का स्लेटी सूट पहना दिया जाए जिसका उन दिनों बहुत चलन था. वो लोग बाज़ार गए और नाथूराम के लिए वो कपड़ा ख़रीद लाए. नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्तौल निकाली और उसमें सात गोलियाँ भरीं."


सरदार पटेल गांधी से मिलने पहुंचे

उधर डरबन के महात्मा गांधी के पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार उनसे मिलने आए थे. उसके बाद वो दिल्ली के मुस्लिम नेताओं मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान और अहमद सईद से मिले. उन्हें उन्होंने आश्वस्त किया कि उन लोगों की सहमति के बिना वो वर्धा नहीं जाएंगे.


दोपहर बाद गांधी से मिलने कुछ शरणार्थी, कांग्रेस नेता और श्रीलंका के एक राजनयिक अपनी बेटी के साथ आए. उनसे मिलने वालों में इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी भी थे.


गांधी से मिलने आने वालों में सबसे ख़ास शख्स थे सरदार पटेल जो साढ़े चार बजे वहां पहुंचे.


दूसरी तरफ़ समय काटने के लिए गोडसे और उनके साथी प्रतीक्षा कक्ष में चले गए.


डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस लिखते हैं, "नाथूराम ने कहा, मेरा जी मूँगफली खाने का कर रहा हैं. आप्टे मूँगफली ख़रीदने चले गए. थोड़ी देर बाद वापस आकर उन्होंने कहा कि मूँगफली तो पूरी दिल्ली में कहीं नहीं मिल रही है, क्या काजू या बादाम से काम चल जाएगा?"


"इस पर नाथूराम ने कहा- मुझे सिर्फ़ मूँगफली चाहिए. आप्टे एक बार फिर मूँगफली की खोज में बाहर चले गए. थोड़ी देर बाद वो एक बड़े से थैले में मूँगफली लेकर आए. नाथूराम बड़े चाव से जल्दी-जल्दी मूँगफली खाने लगे."


इतने में चलने का समय हो गया.


बिरला हाउस जाने से पहले सभी बिरला मंदिर गए

तय हुआ कि गोडसे और उनके साथी पहले बिरला मंदिर जाएंगे. करकरे और आप्टे वहां भगवान के दर्शन और प्रार्थना करना चाहते थे. गोडसे को इस तरह की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.


मनोहर मुलगाँवकर अपनी क़िताब 'द मैन व्हू किल्ड गाँधी' में लिखते हैं, "करकरे जो भी शब्द कहने की कोशिश करते उनकी आवाज़ कांपने लगती. आप्टे उन्हें घूरकर संयत रहने की सलाह देते. गोडसे मंदिर के पीछे वाले बाग में जाकर आप्टे और करकरे की राह देखने लगे. ये दोनों जूते उतार कर नंगे पांव मंदिर के अंदर गए और वहां उन्होंने मंदिर में लगा पीतल का घंटा बजाया."


"जब ये लोग बाहर आए तो नाथूराम गोडसे शिवाजी की मूर्ति के पास खड़े थे. उन्होंने इन दोनों से पूछा कि क्या वो दर्शन कर आए? उन्होंने कहा-हाँ. इस पर नाथूराम बोले- मैंने भी दर्शन कर लिए."


बिरला हाउस में गोडसे की तलाशी नहीं हुई

वहां से नाथूराम गोडसे ने बिरला हाउस के लिए एक तांगा किया. नाथूराम के जाने के पांच मिनट बाद आप्टे और करकरे भी एक अलग तांगा कर बिरला हाउस पहुंच गए.


बाद में करकरे ने डॉमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिंस को बताया, "हमने राहत भरी सांस ली जब बिरला हाउस के फाटक पर हमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा."


उन्होंने बताया, "वहां पहले से अधिक तादाद में संतरी ज़रूर तैनात थे लेकिन कोई अंदर जाने वालों की तलाशी नहीं ले रहा था. हम टहलते हुए जब बगीचे में पहुंचे तो हमने देखा कि नाथूराम भीड़ में लोगों के बीच घुलमिल कर खड़े थे. हम भी उनके दोनों ओर जा कर खड़े हो गए. न उन्होंने हमारी तरफ़ देखा न हमने उनकी तरफ़."



गोडसे ने नज़दीक से गांधी पर तीन फ़ायर किए




उधर गांधी और पटेल के बीच पटेल और नेहरू के बीच के बढ़ते मतभेदों पर चर्चा हो रही थी. ये चर्चा इतनी गहरी और गंभीर थी कि गांधी को अपनी प्रार्थना सभा में जाने के लिए देर हो गई.


इस बातचीत के दौरान जैसा कि उनकी आदत थी, गांधी लगातार सूत कातते रहे. 5 बजकर 15 मिनट पर वो बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे.


उन्होंने अपने हाथ अपनी भतीजियों आभा और मनु के कंधों पर टिका रखे थे. चूंकि उन्हें देर हो गई थी, इसलिए उन्होंने प्रार्थना स्थल जाने के लिए शॉर्टकट लिया.


राम चंद्र गुहा अपनी किताब 'गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' में लिखते हैं, "गांधी प्रार्थनास्थल के लिए बने चबूतरे की सीढ़ियों के पास पहुंचे ही थे कि, ख़ाकी कपड़े पहने हुए नाथूराम गोडसे उनकी तरफ़ बढ़े. उनके हावभाव से लग रहा था जैसे वो गांधी के पैर छूना चाह रहे हों."


वो लिखते हैं, "आभा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने आभा को धक्का दे दिया और उनके हाथ से गांधी की नोटबुक, थूकदान और तस्बीह छिटक कर ज़मीन पर आ गिरे. तभी गोडसे ने अपनी पिस्तौल निकाल कर गांधी पर पॉइंट ब्लैंक रेंज से लगातार तीन फ़ायर किए. एक गोली गांधी के सीने में और दो गोली उनके पेट में लगी."


"गांधी ज़मीन पर गिरे और उनके मुंह से निकला 'हे राम.' ख़ून से भीगी उनकी धोती में मनु को गांधी की इंगरसोल घड़ी दिखाई दी. उस समय उस घड़ी में 5 बज कर 17 मिनट हुए थे. गांधी के गिरते ही सुशीला नैयर की एक सहयोगी डॉक्टर ने गांधी का सिर अपनी गोद में रख लिया."



राम चंद्र गुहा लिखते हैं, "उनके शरीर से जान पूरी तरह निकली नहीं थी. उनका शरीर गर्म था और उनकी आंखें आधी मुंदी हुई थीं. उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वो गांधी को मृत घोषित कर दें, लेकिन अंदर ही अंदर वो महसूस कर पा रही थीं कि गांधी अब इस दुनिया में नहीं है."


गुहा लिखते हैं, "सरदार पटेल, गांधी से मिलकर अपने घर पहुंचे ही थे कि उन्हें गांधी पर हुए हमले की ख़बर मिली. वो तुरंत अपनी बेटी मणिबेन के साथ वापस बिरला हाउस पहुंचे. उन्होंने गांधी की कलाई को इस उम्मीद के साथ पकड़ा कि शायद उनमें कुछ जान बची हो. वहां मौजूद एक डॉक्टर बीपी भार्गव ने एलान किया कि गांधी को इस दुनिया से विदा लिए 10 मिनट हो चुके हैं."


"ठीक 6 बजे रेडियो पर बहुत सोचसमझ कर तैयार की गई घोषणा सुनकर भारत के लोगों को पता चला कि जिस सीधेसादे कोमल स्वभाव के शख़्स ने उन्हें आज़ादी दिलाई थी, वो इस दुनिया को अलविदा कह चुका था समाचार बुलेटिन में बार-बार दोहराया गया कि उनको मारने वाला व्यक्ति हिंदू था."


भीड़ ने नाथूराम गोडसे पर किया छड़ियों से वार

नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे अपनी किताब 'गांधी वध और मैं' में लिखते हैं, "गोलियां छोड़ते ही अपना पिस्तौल वाला हाथ ऊपर उठा कर नाथूराम चिल्लाए पुलिस... पुलिस. लेकिन आधा मिनट बीतने पर भी कोई उनके पास नहीं आया."


"तभी एक वायुसैनिक अधिकारी की नज़रें उनसे मिली. आंखों ही आंखों में गोडसे ने उन्हें अपने निकट आने के लिए कहा. उसने आकर नाथूराम की कलाई ऊपर ही ऊपर पकड़ ली. उसके बाद कई लोगों ने उन्हें घेर लिया. कुछ ने उन्हें पीटा भी."


"एक उत्तेजित व्यक्ति ने पिस्तौल को नाथूराम के सामने करते हुए कहा कि मैं इसी पिस्तैल से तुम्हें मार डालूंगा. नाथूराम ने जवाब दिया- बहुत खुशी से, लेकिन ऐसा नहीं प्रतीत होता कि पिस्तौल को संभालने का ज्ञान तुम्हें है. उसका सेफ़्टीकैच खुला है. ज़रा-सा धक्का लग जाने से तुम्हारे हाथों दूसरा कोई मर जाएगा."


गोपाल गोडसे लिखते हैं, "बात वहां खड़े पुलिस अधिकारी की समझ में आ गई. उसने तुरंत पिस्तौल अपने हाथ में लेकर उसका सेफ़्टीकैच बंद कर उसे अपनी जेब में रख लिया. उसी समय कुछ लोगों ने नाथूराम पर छड़ियों से वार किए जिससे उनके माथे से खून बहने लगा."


गोडसे बोले- कोई रंज नहीं

गांधी की मौत की ख़बर सुनकर वहां सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक थे मौलाना आज़ाद और देवदास गांधी. उसके तुरंत बाद नेहरू, पटेल, माउंटबेटन, दूसरे मंत्री और सेनाध्यक्ष जनरल रॉय बूचर वहां पहुंचे.


वीआईपी लोगों के आगमन के बीच हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार के एक संवाददाता तुगलक रोड पुलिस स्टेशन पहुंच गए.


31 जनवरी, 1948 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में उन्होंने लिखा, "गांधी के हत्यारे नाथूराम को एक अंधेरे, बिना लाइट के एक कमरे में बंद किया गया था. उसके माथे से ख़ून निकल रहा था और उसके चेहरे का बायां हिस्सा ख़ून से भरा हुआ था. जब मैं कमरे में घुसा तो हत्यारा अपनी जगह से उठ गया. जब मैंने उससे पूछा कि तुम्हें इस बारे में कुछ कहना है तो उसका जवाब था, मैंने जो कुछ भी किया है उसका मुझे कतई दुख नहीं है. बाहर निकलते हुए मैंने पुलिस वाले से पूछा कि नाथूराम के पास पिस्तौल के अलावा क्या मिला तो उसका जवाब था, 400 रुपये."


रात 2 बजे ठंडे पानी से गांधी के पार्थिव शरीर को नहलाया गया

रात को दो बजे जब भीड़ थोड़ी छंटी तो गांधी के साथी उनके पार्थिव शरीर को बिरला हाउस के अंदर ले आए. गांधी के शव के स्नान करने की ज़िम्मेदारी ब्रजकृष्ण चाँदीवाला को दी गई.


चाँदीवाला पुरानी दिल्ली के एक परिवार से आते थे और 1919 से ही जब उन्होंने पहली बार गांधी को अपने सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज में बोलते हुए सुना, उस दिन से ही उन्होंने ख़ुद को गांधी की सेवा में लगा लिया था.


ब्रजकृष्ण चाँदीवाला ने गांधी के रक्तरंजित कपड़े उतार कर उनके बेटे देवदास गांधी के हवाले किए. उन कपड़ो में उनकी ऊनी शॉल भी थी जिसमें गोलियों से तीन छेद बन गए थे. ख़ून बहने से उनके कपड़े उनके जिस्म से चिपक गए थे.


बाद में ब्रजकृष्ण ने अपनी किताब 'एट द फ़ीट ऑफ़ गांधी' में लिखा, "बापू का निर्जीव शरीर लकड़ी के तख़्ते पर रखा हुआ था. मैंने उसे नहलाने के लिए टब से लोटे में ठंडा पानी भरा और बापू के शरीर पर डालने के लिए अपना हाथ बढ़ाया."


"तभी अचानक अपने आप ही मेरे हाथ रुक गए, बापू ने कभी भी ठंडे पानी से स्नान नहीं किया था. उस समय रात के दो बज रहे थे. जनवरी की रात की ज़बरदस्त ठंड थी. मैं किस तरह वो बर्फ़ीला पानी बापू को शरीर पर डाल सकता था?"


"मेरे टूटे हुए दिल से एक आह-सी निकली और मैं अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया. लेकिन फ़िर मैंने उसी ठंडे पानी से बापू को नहलाया. मैंने उनके शरीर को पोंछा और वही कपड़ा उन्हें पहना दिया जो मैंने उनके पिछले जन्मदिन पर उनके लिए ख़ुद काता था. मैंने उनके गले में सूत की बिनी हुई माला भी पहनाई और मनु ने उनके माथे पर तिलक लगाया."


250 भारतीय सैनिकों ने गांधी के पार्थिव शरीर को खींचा

अगले दिन गांधी के पार्थिव शरीर को एक खुले डॉज वाहन में रखा गया. उनके पैरों के पास सरदार पटेल बैठे हुए थे जबकि नेहरू उनके सिर के पास बैठे हुए थे. उस वाहन में गांधी के पुराने साथी राजकुमारी अमृत कौर और जेबी कृपलानी भी सवार थे.


बिरला हाउस से गांधी की शव यात्रा पहले बांए मुड़ी और फिर दाहिने मुड़ते हुए इंडिया गेट की तरफ़ बढ़ चली. शायद पहली बार लोगों को इंडिया गेट की दीवार पर चढ़ कर महात्मा गांधी की शवयात्रा को देखते हुए देखा गया.


माउंटबेटन के निजी सचिव एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपनी किताब 'मिशन विद माउंटबेटन' में लिखा, "अंग्रेज़ी राज को भारत से हटाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी को उनकी मृत्यु पर भारत के लोगों से ऐसी श्रंद्धांजलि मिल रही थी जिसके बारे में कोई वायसराय कल्पना भी नहीं कर सकते थे."


जब गांधी की शवयात्रा दिल्ली गेट के पास पहुंची तो तीन डकोटा विमानों ने नीचे उड़ान भरते हुए राष्ट्रपिता को सलामी दी. बाद में अनुमान लगाया गया कि महात्मा गांधी की शवयात्रा में कम से कम 15 लाख लोगों ने भाग लिया.


मशहूर फ़ोटोग्राफ़र मार्ग्रेट बर्के वाइट ने जब अपने लाइका कैमरे के लेंस को फ़ोकस किया तो उनके ज़हन में आया कि वो शायद धरती पर जमा होने वाली सबसे बड़ी भीड़ को अपने कैमरे में कैद कर रही हैं.


अंत्येष्ठि स्थल से 250 मीटर पहले डॉज गाड़ी का इंजन बंद कर दिया गया और भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के 250 जवान चार रस्सों की मदद से गाड़ी को खींच कर उस स्थान पर ले गए जहां गांधी की चिता में आग लगाई जानी थी.


आकाशवाणी के कमेंटेटर मेलविल डिमैलो ने लगातार सात घंटे तक माहात्मा गांधी की शवयात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया. जब कमेंट्री समाप्त हो गई तो वो अपनी ओबी वैन पर बैठे अपनी थकान मिटा रहे थे. तभी उन्होंने देखा कि एक हाथ उनकी वैन के हुड के कोने को पकड़ने की कोशिश कर रहा था. जब डिमैलो ने ग़ौर से देखा तो उन्होंने पाया कि वो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे.


उन्होंने बताया था, "मैंने अपने हाथ का सहारा देकर उन्हें अपनी वैन की छत पर खींच लिया. नेहरू ने मुझसे पूछा क्या तुमने गवर्नर जनरल को देखा है? मैंने कहा वो आधे घंटे पहले यहां से चले गए. फिर नेहरू ने पूछा क्या तुमने सरदार पटेल को देखा है? मैंने जवाब दिया वो भी गवर्नर जनरल के जाने के कुछ मिनटों बाद चले गए थे. तभी मुझे महसूस हुआ कि उस अफ़रा-तफ़री में कई लोग अपने दोस्तों को खो बैठे थे."



जब आग के हवाले किया गया पार्थिव शरीर

गांधी की अंत्येष्ठि में 15 मन चंदन की लकड़ी, 4 मन घी और 1 मन नारियल का इस्तेमाल किया गया. जैसे ही शाम के धुंधलके में गांधी की चिता से लाल लपटें उठी वहां मौजूद लाखों लोग एक स्वर में कह उठे 'महात्मा गांधी अमर रहें.'


बर्नाड शॉ ने गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "ये दिखाता है कि अच्छा होना कितना ख़तरनाक है."


पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने शोक संदेश में लिखा, "वो हिंदू समुदाय के महानतम लोगों में से एक थे."


जब उनके एक साथी ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि गांधी का योगदान एक समुदाय से कहीं ऊपर उठ कर था, तब भी जिन्ना ने अपने विचार नहीं बदले और कहा, 'दैट वॉज़ वाट ही वाज़, अ ग्रेट हिंदू."


जिन्ना के नंबर दो लियाक़त अली ने ज़रूर कहा, "गांधी हमारे समय के महान व्यक्ति थे."


पाकिस्तान टाइम्स ने लिखा, "गांधी भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे चाहे जाने वाले और सम्मानित राजनीतिक नेता थे."


उस समय पाकिस्तान टाइम्स के संपादक फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा, "गांधी का जाना भारत के लोगों के साथ पाकिस्तान के लोगों के लिए भी उतनी ही बुरी ख़बर है."




Source: BBC NEWS

No comments:

Post a Comment

Thanks

Chapter link

  Link: outcomes of Democracy   Link : Nationalism in India  Link :. Social Science study Materials class 10 Link : Social Science cl...